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ऋ॒तं ये॑मा॒न ऋ॒तमिद्व॑नोत्यृ॒तस्य॒ शुष्म॑स्तुर॒या उ॑ ग॒व्युः। ऋ॒ताय॑ पृ॒थ्वी ब॑हु॒ले ग॑भी॒रे ऋ॒ताय॑ धे॒नू प॑र॒मे दु॑हाते ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtaṁ yemāna ṛtam id vanoty ṛtasya śuṣmas turayā u gavyuḥ | ṛtāya pṛthvī bahule gabhīre ṛtāya dhenū parame duhāte ||

पद पाठ

ऋ॒तम्। ये॒मा॒नः। ऋ॒तम्। इत्। व॒नो॒ति॒। ऋ॒तस्य॑। शुष्मः॑। तु॒र॒ऽयाः। ऊ॒म् इति॑। ग॒व्युः। ऋ॒ताय॑। पृ॒थ्वी इति॑। ब॒हु॒ले इति॑। ग॒भी॒रे इति॑। ऋ॒ताय॑। धे॒नू इति॑। प॒र॒मे इति॑। दु॒हा॒ते॒ इति॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:23» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (ऋताय) सत्य के लिये (बहुले) बहुत पदार्थों से युक्त (गभीरे) गम्भीर आश्रय में (पृथ्वी) भूमि और अन्तरिक्ष तथा जैसे (ऋताय) सत्य और जल के लिये (परमे) अति उत्तम (धेनू) गौओं के सदृश वर्त्तमान (दुहाते) प्रातःकाल वैसे (ऋतम्) सत्य को जो (येमानः) नियम करते हुए और वैसे (ऋतम्) सत्य की जो (वनोति) याचना करता है तथा (ऋतस्य) सत्य के जो (शुष्मः) बल को (तुरयाः) शीघ्रता को प्राप्त (उ) और (गव्युः) निज सम्बन्धिनी पृथिवी वा वाणी को चाहनेवाला है, वे (इत्) ही सर्वदा पूर्ण सुख को प्राप्त होते हैं ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो लोग मनुष्य के शरीर को प्राप्त होकर नियम से सत्य आचार, सत्य याञ्चा करके शीघ्र धार्मिक होते हैं, वे भूमि और सूर्य्य के सदृश सब की कामना की पूर्ति कर सकते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथर्त्ताय बहुले गभीरे पृथ्वी यथर्त्ताय परमे धेनू दुहाते तथर्तं ये येमानस्तथर्त्तं यो वनोति तथर्त्तस्य यः शुष्मस्तुरया उ गव्युरस्ति त इत् सदैव पूर्णं सुखं लभन्ते ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतम्) सत्यम् (येमानः) नियमयन्तः (ऋतम्) (इत्) एव (वनोति) याचते (ऋतस्य) (शुष्मः) बलम् (तुरयाः) शीघ्रतां प्राप्तम् (उ) (गव्युः) य आत्मनो गां पृथ्वीं वाचं वेच्छुः (ऋताय) सत्याय जलाय वा (पृथ्वी) भूम्यन्तरिक्षे (बहुले) बहुपदार्थयुक्ते (गभीरे) गम्भीराश्रये (ऋताय) सत्याय (धेनू) गावाविव वर्त्तमाने (परमे) प्रकृष्टे (दुहाते) प्रातः ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! ये मनुष्यशरीरं प्राप्य नियमेन सत्याचारं सत्ययाञ्चां कृत्या सद्यो धार्मिका जायन्ते भूमिसूर्य्यवत् सर्वेषां कामपूर्तिं कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जी माणसे मनुष्य शरीर प्राप्त करून नियमाने सत्याचरण, सत्य प्रार्थना करून तात्काळ धार्मिक बनतात ती भूमी व सूर्याप्रमाणे सर्वांची कामना पूर्ण करू शकतात. ॥ १० ॥